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अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा | शाही शायरी
apni jaan-bazi ka jis dam imtihan ho jaega

ग़ज़ल

अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा

इम्दाद इमाम असर

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अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा
ख़ंजर-ए-सफ़्फ़ाक पर जौहर अयाँ हो जाएगा

आह-ए-सोज़ाँ का अगर ऊँचा धुआँ हो जाएगा
आसमाँ इक और ज़ेर-ए-आसमाँ हो जाएगा

कुछ समझ कर उस मह-ए-ख़ूबी से की थी दोस्ती
ये न समझे थे कि दुश्मन आसमाँ हो जाएगा

ले ख़बर बीमार-ए-ग़म की वर्ना ऐ रश्क-ए-मसीह
तेरी फ़ुर्क़त में फ़िराक़-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो जाएगा

ख़ाक कर देगा मुझे आख़िर सियह-चश्मों का इश्क़
जिस्म-ए-ख़ाकी गर्द-ए-पा-ए-आहुवाँ हो जाएगा

जब अदा से वो करेगा क़त्ल मुझ को ऐ 'असर'
कुश्ता-ए-शमशीर-ए-हैरत इक जहाँ हो जाएगा