अपनी हस्ती मिटा के क्या होगा
उस को अपना बना के क्या होगा
जिन के चेहरे पे हैं कई चेहरे
उन को शीशा दिखा के क्या होगा
अपने हक़ के लिए लड़ो खुल कर
यूँ ही आँसू बहा के क्या होगा
जब हैं परदेस में सजन तो फिर
हाथ मेहंदी रचा के क्या होगा
बे-वफ़ाओं को हाल-ए-दिल अपना
छोड़िए भी सुना के क्या होगा
उन को ख़ुद पर भी जब यक़ीन नहीं
मेरा सर भी कटा के क्या होगा
जो कभी हम को पूछता ही नहीं
उस की महफ़िल में जा के क्या होगा
खिड़कियाँ ज़ेहन की नहीं खोलीं
सिर्फ़ शमएँ जला के क्या होगा
अपने आमाल पर नज़र रखिए
ऐब उन के गिना के क्या होगा
तू जो दुनिया में बन रहा है ख़ुदा
सामने फिर ख़ुदा के क्या होगा
ये ख़बर आई तुम न आओगे
फिर तो ये घर सजा के क्या होगा
ज़िक्र से जिन के धड़कनें बढ़ जाएँ
उन से नज़रें मिला के क्या होगा
जब तिरे प्यार पे यक़ीं है हमें
फिर हमें आज़मा के क्या होगा
ज़िंदगी में अगर सुकून न हो
फिर ये दौलत कमा के क्या होगा
जो हैं बौने रहेंगे बौने ही
उन को सर पर बिठा के क्या होगा
ग़ज़ल
अपनी हस्ती मिटा के क्या होगा
मीनाक्षी जिजीविषा