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अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे | शाही शायरी
apni haalat pe aansu bahane lage

ग़ज़ल

अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे

आसिमा ताहिर

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अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
सर्द रातों में ख़ुद को जगाने लगे

सुर्ख़ तारों के हमराह कर के सफ़र
ख़्वाब-ज़ारों से क्यूँ आगे जाने लगे

दूर बजने लगी है कहीं बाँसुरी
हम भी ज़िंदान में गीत गाने लगे

जो बसारत बसीरत से महरूम हैं
शहर के आइनों को सजाने लगे

हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
वो भी क़िस्सा किसी का सुनाने लगे

नीस्ती का सितम कोई कम था जो तुम
अपनी हस्ती का दुख भी मनाने लगे

जब बुझी मेरी आँखों की लौ 'आसिमा'
तीरा मंज़र भी जल्वा दिखाने लगे