अपनी ग़ज़लों को रिसालों से अलग रखता हूँ
यानी ये फूल किताबों से अलग रखता हूँ
हाँ बुज़ुर्गों से अक़ीदत तो मुझे है लेकिन
मुश्किलें अपनी मज़ारों से अलग रखता हूँ
मंज़िलें आ के मेरे पाँव में गिर जाती हैं
हौसला जब मैं थकानों से अलग रखता हूँ
उन की आमद का पता देती है ख़ुशबू उन की
उस घड़ी ख़ुद को जहानों से अलग रखता हूँ
होश वाले मुझे अपनों में गिना करते हैं
मैं कहाँ ख़ुद को दीवानों से अलग रखता हूँ
मुझ को अच्छा नहीं लगता ये उमीदें टूटें
इस लिए तीर कमानों से अलग रखता हूँ
ग़ज़ल
अपनी ग़ज़लों को रिसालों से अलग रखता हूँ
अशफ़ाक़ रशीद मंसूरी