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अपनी ग़ैरत के अलावा कहीं देखे न गए | शाही शायरी
apni ghairat ke alawa kahin dekhe na gae

ग़ज़ल

अपनी ग़ैरत के अलावा कहीं देखे न गए

निवेश साहू

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अपनी ग़ैरत के अलावा कहीं देखे न गए
ख़ुद से निकले थे मगर ग़ैर के पीछे न गए

तुम को अफ़्सोस तुम्हें ठीक बनाया न गया
और एक हम के अभी चाक पे रक्खे न गए

इक सितम ये के हमें वस्ल में आया न सुकूँ
इक सितम ये के तिरे हिज्र भी देखे न गए

संग उस के तो मोहब्बत में सलीक़े से कटी
बा'द उस के भी बदन से ये सलीक़े न गए

तेरे आने पे कहाँ सर पे उठा लेते थे घर
तेरे जाने पे तिरे पीछे दरीचे न गए

उस की ख़ुश्बू को भी रुख़्सत न किया जाता था
हम से कुछ रोज़ तो कपड़े भी उतारे न गए