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अपनी बेचारगी पे रो न सके | शाही शायरी
apni bechaargi pe ro na sake

ग़ज़ल

अपनी बेचारगी पे रो न सके

द्वारका दास शोला

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अपनी बेचारगी पे रो न सके
तेरे क्या होते अपने हो न सके

ज़िंदगी और वो भी माँगे की
हम नदामत का दाग़ धो न सके

ख़ुद-फ़रेबी की इंतिहा ये है
दिल सी बेकार शय भी खो न सके

ना-ख़ुदा के बग़ैर कुछ न बना
अपनी कश्ती भी ख़ुद डुबो न सके