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अपनी आँखों में हसीं ख़्वाब सजाए रक्खो | शाही शायरी
apni aankhon mein hasin KHwab sajae rakkho

ग़ज़ल

अपनी आँखों में हसीं ख़्वाब सजाए रक्खो

फ़रहत शहज़ाद

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अपनी आँखों में हसीं ख़्वाब सजाए रक्खो
लाख तूफ़ान उठें शम्अ' जलाए रक्खो

रात फिर रात है इक रोज़ गुज़र जाएगी
सुब्ह की आस अज़ाएम में बसाए रक्खो

ख़्वाहिश-ए-दिल की हवा तेज़ बहुत है यारो
आग पिंदार की सीने में जलाए रक्खो

जीतना चाहो तो हर मात सहो हँस हँस कर
फ़िक्र-ए-मायूस ख़यालों से बचाए रक्खो

यूँ ज़रा देर को दिल से ही लुभा लेते हैं
बात तो जब है कि ता-उम्र लुभाए रक्खो

तुम ने सच बोला है मस्लूब तुम्हें होना है
अपने काँधे पे सलीब अपनी उठाए रक्खो

गर ये चाहो कि अयाँ कर्ब न हो सीने का
जान-ए-'शहज़ाद' निगाहों से बनाए रक्खो