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अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ | शाही शायरी
apni aankhen jo band kar dekhun

ग़ज़ल

अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ

आसिमा ताहिर

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अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
सब्ज़ ख़्वाबों का मैं सफ़र देखूँ

डूबने की न तैरने की ख़बर
इश्क़-दरिया में बस उतर देखूँ

बा'द उस के नहीं ख़बर क्या है
आइने तक तो चश्म तर देखूँ

दिल में बजता हुआ धड़कता हुआ
अपनी तन्हाई का गजर देखूँ

बैन करती हुई बहारों में
ख़ुद में इक शोर-ए-ख़ैर-ओ-शर देखूँ

ख़्वाब की लहलहाती वादी में
ख़ुशबुओं से बना नगर देखूँ

आसमाँ ले रहा है अंगड़ाई
तितलियों के नगर में डर देखूँ

मौजा-ए-गुल के हाथ में लिपटी
'आसिमा' दश्त की ख़बर देखूँ