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अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ | शाही शायरी
apne zinda jism ki guftar mein khoya hua

ग़ज़ल

अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ

रशीद निसार

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अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ
ख़्वाब कैसे देखता दोपहर का सोया हुआ

जब समाअ'त के कबूतर आसमाँ में छुप गए
तब वो मेरे पास आया शौक़ से गोया हुआ

मैं तो उस के लम्स की ख़्वाहिश में जी कर मर गया
उस का सारा जिस्म था अग़्यार का धोया हुआ

नफ़रतों के बीच मेरे खेत में लाया था वो
जिस के बाग़ों में लहू का पेड़ था बोया हुआ

अपने होंटों पर सुलगते फूल आए हैं 'निसार'
हँस के बोला था हमारे साथ का रोया हुआ