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अपने पस-मंज़र में मंज़र बोलते | शाही शायरी
apne pas-manzar mein manzar bolte

ग़ज़ल

अपने पस-मंज़र में मंज़र बोलते

शरर फ़तेह पुरी

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अपने पस-मंज़र में मंज़र बोलते
चीख़ते दीवार-ओ-दर घर बोलते

कुछ तो खुलता माजरा-ए-क़त्ल-ओ-ख़ूँ
चढ़ के औज-ए-दार पे सर बोलते

मस्लहत थी कोई वो चुप थे अगर
बोलने वाले तो खुल कर बोलते

जो तिलिस्म-ए-आज़री में बंद थे
वो सनम पत्थर के क्यूँ कर बोलते

बह गया अश्कों का सैल-ए-ख़ूँ कहाँ
ख़ुश्क आँखों के समुंदर बोलते

ना-शनासान-ए-सुख़न की बज़्म में
बोलते तो क्या सुख़नवर बोलते