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अपने नाख़ुन अपने चेहरे पर ख़राशें दे गए | शाही शायरी
apne naKHun apne chehre par KHarashen de gae

ग़ज़ल

अपने नाख़ुन अपने चेहरे पर ख़राशें दे गए

अली अकबर अब्बास

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अपने नाख़ुन अपने चेहरे पर ख़राशें दे गए
घर के दरवाज़े पे कुछ भूके सदाएँ दे गए

जागते लोगों ने शब-मारों की जब चलने न दी
दिन चढ़े वो रौशनी को बद-दुआएँ दे गए

ख़ुद ही अपने हाथ काटे और आँखें फोड़ लीं
देवताओं को पुजारी किया सज़ाएँ दे गए

एक अपनी ज़ात के नुक़्ते को मरकज़ मान कर
हौसलों के ज़ाविए बेहद ख़लाएँ दे गए

तेज़ तूफ़ानों ने साहिल रौंद डाले थे मगर
जब वो टकराए पहाड़ों से घटाएँ दे गए