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अपने में जो अब भूले से कभी राहत का तक़ाज़ा पाता है | शाही शायरी
apne mein jo ab bhule se kabhi rahat ka taqaza pata hai

ग़ज़ल

अपने में जो अब भूले से कभी राहत का तक़ाज़ा पाता है

जोश मलीहाबादी

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अपने में जो अब भूले से कभी राहत का तक़ाज़ा पाता है
हालात पे मेरे कर के नज़र दिल मुझ से बहुत शरमाता है

उलझन में यकायक होती है दम रुकता है दिल भर आता है
जब कोई तसल्ली देता है कुछ और भी जी घबराता है

आराम सरकने वाला है किस शय पे ये ग़र्रा है तुझ को
दुनिया ये बदलने वाली है किस चीज़ पे तू इतराता है

एलान सहर को होता है यूँ हुस्न की शाहंशाही का
गर्दूं पे सुनहरा इक परचम मशरिक़ की तरफ़ लहराता है

अंदाज़-ओ-अदा से ऐ दुनिया तू लाख सँवर कर सामने आ
ये 'जोश' फ़क़ीर आज़ाद-मनश जब ध्यान में तुझ को लाता है