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अपने लैल-ओ-नहार की बातें | शाही शायरी
apne lail-o-nahaar ki baaten

ग़ज़ल

अपने लैल-ओ-नहार की बातें

जाफ़र अब्बास

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अपने लैल-ओ-नहार की बातें
जब्र की इख़्तियार की बातें

हर तरफ़ कब से हो रही हैं यहाँ
गर्दिश-ए-रोज़गार की बातें

चार-सू याँ पे मौजज़न हैं सराब
ज़ीस्त के रेगज़ार की बातें

इक ज़माना गुज़र गया यूँही
हम हैं और दश्त-ए-ख़ार की बातें

इस कड़ी धूप में मज़ाहिब में
शजर-ए-साया-दार की बातें

है ज़मीं सख़्त आसमाँ चुप है
वाह रे परवरदिगार की बातें

जिस की इक भी झलक न देखी कभी
क्या हों उस पर्दा-दार की बातें

मत करो बे-हिसार की बातें
मत करो बे-कनार की बातें

ये जो प्यारी ज़मीं मिली है तुम्हें
बस करो इस दयार की बातें

गर करो अपने दिल की बात करो
हाँ इसी सोगवार की बातें