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अपने को आग़ाज़ को अंजाम में पाया हम ने | शाही शायरी
apne ko aaghaz ko anjam mein paya humne

ग़ज़ल

अपने को आग़ाज़ को अंजाम में पाया हम ने

रफ़अत शमीम

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अपने को आग़ाज़ को अंजाम में पाया हम ने
राज़ क्या पर्दा-ए-इबहाम में पाया हम ने

खो गया था जो कभी भीड़ में चेहरों की उसे
अपनी तन्हाई की हर शाम में पाया हम ने

रेत भरते रहे आँखों में सराबों की सदा
उज़्र जीने का उसी काम में पाया हम ने

कितने शीरीं लब-ए-ना-गुफ़्ता मगर थे उस के
लुत्फ़ कुछ और ही दुश्नाम में पाया हम ने

तुम तो ढूँडा किए उम्मीद-ओ-यक़ीं में उस को
दिल की हर ख़्वाहिश-ए-नाकाम में पाया हम ने