अपने कहते हैं कोई बात तो दुख होता है
हंस के करते हैं इशारात तो दुख होता है
जिन से मंसूब मिरे दिल की हर इक धड़कन हो
वो न समझें मिरे जज़्बात तो दुख होता है
मुझ को महरूम किया तुम ने गिला कोई नहीं
हों जो ग़ैरों पे इनायात तो दुख होता है
जिस्म-ओ-जाँ जिन के लिए हम ने लुटा डाले हूँ
छोड़ जाएँ जो वही साथ तो दुख होता है
दूर से रोज़-ए-मसर्रत का दिखा कर बादल
ग़म की करते हैं जो बरसात तो दुख होता है
हिज्र में दिन तो किसी तौर गुज़र जाते हैं
जलने लगती है कभी रात तो दुख होता है
बे-सबब छोड़ दिया उस ने कोई बात नहीं
लोग करते हैं सवालात तो दुख होता है
मुझ को बे-लौस मोहब्बत के एवज़ में 'शम्सी'
हो अता ज़ख़्म की सौग़ात तो दुख होता है

ग़ज़ल
अपने कहते हैं कोई बात तो दुख होता है
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी