अपने इक़रार पे क़ाएम न वो इंकार पे है
किस परी-ज़ाद का साया मिरे दिलदार पे है
फ़िक्र-ए-तहज़ीब न अस्नाफ़-ए-अदब से रग़बत
आज-कल सब की नज़र दिरहम-ओ-दीनार पे है
ऐसा लगता है चली आएगी पहलू में अभी
क़द्द-ए-आदम तिरी तस्वीर जो दीवार पे है
मुझ को इस ज़ुल्मत-ए-शब-ज़ार से निस्बत ही क्या
मेरी बेदार नज़र सुब्ह के आसार पे है
मैं तो बिकने पे हूँ राज़ी ब-सर-ओ-चश्म 'सहर'
फ़ैसला आ के टिका मेरे ख़रीदार पे है
ग़ज़ल
अपने इक़रार पे क़ाएम न वो इंकार पे है
मुनीरुद्दीन सहर सईदी