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अपने हिस्से की अना दूँ तो अना दूँ किस को | शाही शायरी
apne hisse ki ana dun to ana dun kis ko

ग़ज़ल

अपने हिस्से की अना दूँ तो अना दूँ किस को

अमित शर्मा मीत

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अपने हिस्से की अना दूँ तो अना दूँ किस को
अपनी नज़रों से गिरा दूँ तो गिरा दूँ किस को

ज़िंदगी का ये मिरी कौन है क़ातिल जाने
मैं हूँ मुश्किल में सज़ा दूँ तो सज़ा दूँ किस को

दोस्ती में भी है रंजिश की कहानी कि मिरी
इस कहानी को बता दूँ तो बता दूँ किस को

मुद्दतों से हैं मिली ठोकरें मुझ को जो यहाँ
इश्क़-बाज़ी में वफ़ा दूँ तो वफ़ा दूँ किस को

वार सब पीठ पे करते हैं यूँ दिल में रह कर
तू बता दे मैं दुआ दूँ तो दुआ दूँ किस को

बात करती ही नहीं अब तो ये तन्हाई भी
मन की हर बात सुना दूँ तो सुना दूँ किस को

हर कोई जूझ रहा है यहाँ अपने ग़म से
दर्द-ए-ग़म की ये दवा दूँ तो दवा दूँ किस को

कौन लाएगा मिरी चिट्ठियाँ ख़ुशियों वाली
अपने घर का मैं पता दूँ तो पता दूँ किस को

ग़म में डूबा हुआ रहता हूँ मैं अब हर लम्हा
'मीत' ये जाम पिला दूँ तो पिला दूँ किस को