अपने हिसार-ए-ज़ात में उलझा हुआ हूँ मैं
या'नी कि काएनात में उलझा हुआ हूँ मैं
क़ाबू में आज दिल नहीं क्या हो गया मुझे
फिर आज ख़्वाहिशात में उलझा हुआ हूँ मैं
जैसे कि होने वाली है अनहोनी फिर कोई
हर-पल तवहहुमात में उलझा हुआ हूँ मैं
कुछ अपना फ़र्ज़ प्यार तिरा फ़िक्र-ए-रोज़गार
कितने ही वारदात में उलझा हुआ हूँ मैं
फ़ुर्सत कहाँ बनाऊँ मरासिम नए नए
पिछले तअ'ल्लुक़ात में उलझा हुआ हूँ मैं
सब हैं असीर-ए-रंज-ओ-अलम इस जहान में
तन्हा कहाँ हयात में उलझा हुआ हूँ मैं
'नायाब' जब नहीं है वफ़ाओं का उस को पास
फिर क्यूँ तकल्लुफ़ात में उलझा हुआ हूँ मैं
ग़ज़ल
अपने हिसार-ए-ज़ात में उलझा हुआ हूँ मैं
जहाँगीर नायाब