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अपने ही घर के सामने हूँ बुत बना हुआ | शाही शायरी
apne hi ghar ke samne hun but bana hua

ग़ज़ल

अपने ही घर के सामने हूँ बुत बना हुआ

जावेद नासिर

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अपने ही घर के सामने हूँ बुत बना हुआ
पर्दे हटे हुए हैं दरीचा खुला हुआ

यूँ ही इधर उधर की सुनाते रहो मुझे
मौसम बहुत उदास है दिल है दुखा हुआ

आवाज़ दे के पूछ लो क्या हो गया उसे
वो शख़्स जा रहा है बहुत सोचता हुआ

क्यूँ देखता है अजनबी नज़रों से वो मुझे
मैं बैठे बैठे जैसे कोई दूसरा हुआ

हर्फ़-ए-दुआ है पास न लब पर शिकायतें
जो कुछ हुआ यहाँ पे वो यारब बुरा हुआ