अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का
गाह आबिद हूँ ख़ुदा का गह पुजारी राम का
लोटते हैं जिस को सुन सुन कर हज़ारों मुर्ग़-ए-दिल
हो रहा है ज़िक्र किस के गेसुओं के दाम का
चश्म-ए-मस्त-ए-यार का हम-चश्म लो पैदा हुआ
देखना अब पोस्त खींचा जाएगा बादाम का
सैर करता है वो आलम की मिरा पैक-ए-निगाह
लाख है बे-दस्त-ओ-पा लेकिन है फिर सौ काम का
सर जुदा तन से किया इक हाथ में जल्लाद ने
नक़्द-ए-जाँ दीजे किया उस ने ये काम इनआम का
हैं शह-ए-मुल्क-ए-जुनूँ सहरा है अपना तख़्त-गाह
तन पे हर दाग़-ए-जुनूँ सिक्का है अपने नाम का
जल्द नाम अपना बता दे जैसे बंदा हूँ तिरा
वास्ता देता हूँ मैं ऐ बुत ख़ुदा के नाम का
बुत-परस्ती की बहुत 'सय्याह' अब कर याद हक़
शुग़्ल-ए-मौला में रहे बंदा वही है काम का
ग़ज़ल
अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का
मियाँ दाद ख़ां सय्याह