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अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का | शाही शायरी
apne hi dam se hai charcha kufr aur islam ka

ग़ज़ल

अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का

मियाँ दाद ख़ां सय्याह

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अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का
गाह आबिद हूँ ख़ुदा का गह पुजारी राम का

लोटते हैं जिस को सुन सुन कर हज़ारों मुर्ग़-ए-दिल
हो रहा है ज़िक्र किस के गेसुओं के दाम का

चश्म-ए-मस्त-ए-यार का हम-चश्म लो पैदा हुआ
देखना अब पोस्त खींचा जाएगा बादाम का

सैर करता है वो आलम की मिरा पैक-ए-निगाह
लाख है बे-दस्त-ओ-पा लेकिन है फिर सौ काम का

सर जुदा तन से किया इक हाथ में जल्लाद ने
नक़्द-ए-जाँ दीजे किया उस ने ये काम इनआम का

हैं शह-ए-मुल्क-ए-जुनूँ सहरा है अपना तख़्त-गाह
तन पे हर दाग़-ए-जुनूँ सिक्का है अपने नाम का

जल्द नाम अपना बता दे जैसे बंदा हूँ तिरा
वास्ता देता हूँ मैं ऐ बुत ख़ुदा के नाम का

बुत-परस्ती की बहुत 'सय्याह' अब कर याद हक़
शुग़्ल-ए-मौला में रहे बंदा वही है काम का