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अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो | शाही शायरी
apne ehsas se chhu kar mujhe sandal kar do

ग़ज़ल

अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो

वसी शाह

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अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो
मैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो

न तुम्हें होश रहे और न मुझे होश रहे
इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो

तुम हथेली को मिरे प्यार की मेहंदी से रंगो
अपनी आँखों में मिरे नाम का काजल कर दो

इस के साए में मिरे ख़्वाब दहक उट्ठेंगे
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो

धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो

जैसे सहराओं में हर शाम हवा चलती है
इस तरह मुझ में चलो और मुझे जल-थल कर दो

तुम छुपा लो मिरा दिल ओट में अपने दिल की
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो

मसअला हूँ तो निगाहें न चुराओ मुझ से
अपनी चाहत से तवज्जोह से मुझे हल कर दो

अपने ग़म से कहो हर वक़्त मिरे साथ रहे
एक एहसान करो इस को मुसलसल कर दो

मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँ
और मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो