अपने दिल को सँभाल सकता हूँ
तुझ को हैरत में डाल सकता हूँ
वज़्अ'-दारी का पास है वर्ना
मैं भी कीचड़ उछाल सकता हूँ
कम न समझो ये आतिश-ए-दिल है
मैं समुंदर उबाल सकता हूँ
तोड़ दूँ आहनी उसूल अपने
फिर मैं सिक्के भी ढाल सकता हूँ
जाने क्यूँ है यक़ीं क़ज़ा को भी
मैं दुआओं से टाल सकता हूँ
मैं तुझे जानता हूँ पीछे से
तेरी पगड़ी उछाल सकता हूँ
कोई पत्थर हो कोई क़ातिल हो
सब के आँसू निकाल सकता हूँ
मैं ने पैदा नहीं किया लेकिन
तेरे हर ग़म को पाल सकता हूँ
मैं जो 'अख़्तर' हूँ एक सूरज हूँ
चाँद अपना उजाल सकता हूँ
ग़ज़ल
अपने दिल को सँभाल सकता हूँ
जुनैद अख़्तर