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अपने दिल की आदत है शहज़ादों वाली | शाही शायरी
apne dil ki aadat hai shahzadon wali

ग़ज़ल

अपने दिल की आदत है शहज़ादों वाली

अनवर सदीद

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अपने दिल की आदत है शहज़ादों वाली
जलती रखता है क़िंदील मुरादों वाली

वीराने पर बिन बरसा इक बादल हूँ मैं
बोझल आँखें और सूरत नाशादों वाली

पँख हिला कर शाम गई है इस आँगन से
अब उतरेगी रात अनोखी यादों वाली

दिल के ताक़ में रोज़ाना ही सजाता हूँ मैं
इक दिन देखी मूरत सुर्ख़ लिबादों वाली

अब तक मेरी आँखों में गुलज़ार खिला है
देखी थी वो साअत नेक इरादों वाली

क्यूँ न रहे इस दिल में उस की किरची
इक तमसील जो देखी थी फ़रियादों वाली