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अपने दम से गुज़र औक़ात नहीं करता मैं | शाही शायरी
apne dam se guzar auqat nahin karta main

ग़ज़ल

अपने दम से गुज़र औक़ात नहीं करता मैं

तरकश प्रदीप

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अपने दम से गुज़र औक़ात नहीं करता मैं
कैसे कह दूँ के ग़लत बात नहीं करता मैं

शाम होती है मेरे घर में सहर होती है
रात भी होती है पर रात नहीं करता मैं

आज फिर ख़ुद से ख़फ़ा हूँ तो यही करता हूँ
आज फिर ख़ुद से कोई बात नहीं करता मैं

फ़क़त इक बात ही में बात बढ़ी है इतनी
सोचता हूँ के मुलाक़ात नहीं करता मैं

क्या बुरा है जो मुझे लोग बुरा ही जानें
काम करते हैं जो हज़रात नहीं करता मैं