अपने अफ़्क़ार-ओ-अंदाज़ नया देता हूँ
ख़ुश्क मंज़र में हसीं रंग मिला देता हूँ
कितना होता है मिरे दिल को ख़ुशी का एहसास
कोई पौदा जो सर राह लगा देता हूँ
वैसे तो सारे ज़माने से छुपा है मिरा हाल
तुम अगर पूछ रहे हो तो बता देता हूँ
रोज़ होती है हवाओं से लड़ाई मेरी
रोज़ दहलीज़ पे इक शम्अ' जला देता हूँ
क्या दिया मुझ को किसी ने है अलग बात मगर
देखना ये है ज़माने को मैं क्या देता हूँ

ग़ज़ल
अपने अफ़्क़ार-ओ-अंदाज़ नया देता हूँ
नूरुल ऐन क़ैसर क़ासमी