अपना तो ये काम है भाई दिल का ख़ून बहाते रहना
जाग जाग कर इन रातों में शेर की आग जलाते रहना
अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
कभी कभी जब वक़्त मिले तो अपने घर भी जाते रहना
रात के दश्त में फूल खिले हैं भूली-बिसरी यादों के
ग़म की तेज़ शराब से उन के तीखे नक़्श मिटाते रहना
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
जब तक दिन का सूरज आए उस का खोज लगाते रहना
तुम भी 'मुनीर' अब उन गलियों से अपने आप को दूर ही रखना
अच्छा है झूटे लोगों से अपना-आप बचाते रहना
ग़ज़ल
अपना तो ये काम है भाई दिल का ख़ून बहाते रहना
मुनीर नियाज़ी