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अपना शहकार अभी ऐ मिरे बुत-गर न बना | शाही शायरी
apna shahkar abhi ai mere but-gar na bana

ग़ज़ल

अपना शहकार अभी ऐ मिरे बुत-गर न बना

मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी

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अपना शहकार अभी ऐ मिरे बुत-गर न बना
दिल धड़कता है मिरा तू मुझे पत्थर न बना

क़ैद-ए-आवारगी-ए-जाँ ही बहुत है मुझ को
एक दीवार मिरी रूह के अंदर न बना

आती जाती हुई साँसों पे लकीरें मत खींच
मेरी तस्वीर मुझे पास बिठा कर न बना

वो घरौंदे तिरे बचपन में भी ढह देती थी
अब तो वो खेल की बातें भी नहीं घर न बना

इक तिरा ध्यान जो टूटेगा बिखर जाऊँगा
मुझ को इक लहर पे बहने दे समुंदर न बना