अपना ही किरदार रद करता हुआ
मैं कहानी मुस्तनद करता हुआ
इक नया नक़्शा बना लाया हूँ मैं
शहर को सहरा की हद करता हुआ
शरह दिल की लिख रहा हूँ मैं नई
हर पुरानी सोच रद करता हुआ
इश्क़ लिक्खेगा नए एराब अब
मेरे दिल को शद्द-ओ-मद करता हुआ
इस तरह से मुस्तनद होता गया
इक क़लंदर ख़ुद को रद करता हुआ
और फिर दीवार में दर हो गया
इश्क़ यूँ मेरी मदद करता हुआ

ग़ज़ल
अपना ही किरदार रद करता हुआ
इसहाक़ विरदग