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अपना हर इक उसूल मुझे हारना पड़ा | शाही शायरी
apna har ek usul mujhe haarna paDa

ग़ज़ल

अपना हर इक उसूल मुझे हारना पड़ा

मुहीत इस्माईल

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अपना हर इक उसूल मुझे हारना पड़ा
थी जीत ही फ़ुज़ूल मुझे हारना पड़ा

तदबीर मेरी एक न मानी बहार ने
पतझड़ के आगे फूल मुझे हारना पड़ा

एज़ाज़ ए'तिमाद है उस का दिया हुआ
गरचे न था क़ुबूल मुझे हारना पड़ा

उस की ख़ुशी थी बाइस-ए-फ़त्ह-ए-हयात-ए-नौ
जब वो हुआ मलूल मुझे हारना पड़ा

जब तक हवा थी साफ़ था मैदान हाथ में
आँखों में आई धूल मुझे हारना पड़ा

मेरे भी क्या नसीब कि वक़्त-ए-दुआ 'मुहीत'
शेरों का था नुज़ूल मुझे हारना पड़ा