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अपना घर बाज़ार में क्यूँ रख दिया | शाही शायरी
apna ghar bazar mein kyun rakh diya

ग़ज़ल

अपना घर बाज़ार में क्यूँ रख दिया

अासिफ़ा निशात

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अपना घर बाज़ार में क्यूँ रख दिया
वाक़िआ' अख़बार में क्यूँ रख दिया

ख़्वाब की अपनी भी इक तौक़ीर है
दीदा-ए-बेदार में क्यूँ रख दिया

खेल में ख़ाना बदलने के लिए
अपना मोहरा हार में क्यूँ रख दिया

सर बचाने तक तो शायद ठीक हो
ख़ौफ़ ये दस्तार में क्यूँ रख दिया

नींद न आना ये रातों को 'निशात'
दिल को इस आज़ार में क्यूँ रख दिया