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अपना दुनिया से सफ़र ठहरा है | शाही शायरी
apna duniya se safar Thahra hai

ग़ज़ल

अपना दुनिया से सफ़र ठहरा है

सय्यद अाग़ा अली महर

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अपना दुनिया से सफ़र ठहरा है
गोशा-ए-क़ब्र में घर ठहरा है

हिज्र में ज़ीस्त को कहते हैं मौत
नफ़अ' का नाम ज़रर ठहरा है

दिल मिरा उस का तरफ़-दार हुआ
जो इधर था वो उधर ठहरा है

और अंधेर हुआ चाहता है
सुर्मा मंज़ूर-ए-नज़र ठहरा है

लिख हवा-ओ-हवस-ए-वस्ल ऐ दिल
क़ासिद-ए-बाद-ए-सबा ठहरा है

देखें दोनों में हवा किस की बंधे
अब्र ऐ दीदा-ए-तर ठहरा है

घर जो उस मह का बना है ऐ 'मेहर'
दिल मिरा माह-ए-निगर ठहरा है