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अपना दुख अपना है प्यारे ग़ैर को क्यूँ उलझाओगे | शाही शायरी
apna dukh apna hai pyare ghair ko kyun uljhaoge

ग़ज़ल

अपना दुख अपना है प्यारे ग़ैर को क्यूँ उलझाओगे

अख़तर इमाम रिज़वी

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अपना दुख अपना है प्यारे ग़ैर को क्यूँ उलझाओगे
अपने दुख में पागल हो कर अब किस को समझाओगे

दर्द के सहरा में लाखों उमीद के लाशे गलते हैं
एक ज़रा से दामन में तुम किस किस को कफ़नाओगे

तोड़ भी दो एहसास के रिश्ते छोड़ भी दो दुख अपनाने
रो रो के जीवन काटोगे रो रो के मर जाओगे

राज़ की बात को ख़ामोशी का ज़हर समझ कर पी जाना
कहने से भी रह न सकोगे कह कर भी पछताओगे

आज यहाँ पर्दों से उधर उर्यानी ही उर्यानी है
तुम भी नंगे हो कर नाचो यूँ कब तक शर्माओगे