अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ
आसमानी अर्ग़वानी ज़ाफ़रानी चूड़ियाँ
इक ज़रा रंग-ए-नज़ाकत भी रही मद्द-ए-नज़र
धान-पान ऐ जान तुम हो पहनो धानी चूड़ियाँ
दाग़ खा खा कर हज़ारों दिल लहू हो हो गए
कल खुली पहनीं जो तुम ने अर्ग़वानी चूड़ियाँ
हाथ खींचे क्यूँ न आराइश से वो नाज़ुक बदन
साइद-ए-नाज़ुक पे करती हैं गिरानी चूड़ियाँ
आशिक़ों के ज़ख़्म रो रो कर लहू हँस हँस पड़ें
मेहंदी मलती हो तो पहनो ज़ाफ़रानी चूड़ियाँ
रंग मेहंदी का तिरी दस्त-ए-निगाराँ में नहीं
कर रही हैं ऐ परी आतिश-फ़िशानी चूड़ियाँ
देखने वाले तुम्हारे दिल बचाएँ किस तरह
आफ़त-ए-जाँ तुम बला-ए-नागहानी चूड़ियाँ
मेरे मातम में उतारीं आ के मेरी क़ब्र पर
दे गई यूँ मुझ को वो अपनी निशानी चूड़ियाँ
चार दिन आराइशों से हाथ उठाना चाहिए
सोग में आशिक़ के लाज़िम हैं बढ़ानी चूड़ियाँ
ईद को है नाज़नीनों सेहत-ए-'नाज़िम' का जश्न
हों नई आराइशें उतरें पुरानी चूड़ियाँ
ग़ज़ल
अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम