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'अंजुम' अगर नहीं दर-ए-दिलदार तक पहुँच | शाही शायरी
anjum agar nahin dar-e-dildar tak pahunch

ग़ज़ल

'अंजुम' अगर नहीं दर-ए-दिलदार तक पहुँच

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

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'अंजुम' अगर नहीं दर-ए-दिलदार तक पहुँच
हो जाए काश रौज़न-ए-दीवार तक पहुँच

जाता है कोई काबे को और कोई सू-ए-दैर
मुझ रिंद की है ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार तक पहुँच

नाले की ना-रसाई ने आजिज़ किया हमें
हो जाती वर्ना आप की सरकार तक पहुँच

ये क्या है बैठा बातें बनाता है दूर से
ईसा अगर बना है तो बीमार तक पहुँच

ले जाएगी बहा के कभी सैल-ए-चश्म-ए-तर
'अंजुम' कभी तो होगी दर-ए-यार तक पहुँच