अंजाम हर इक शय का ब-जुज़ ख़ाक नहीं है
क्या है जो ये आलम ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है
कह दो वो सता कर मुझे बे-फ़िक्र न बैठें
मेरे ही लिए गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है
आँखों से हर इक पर्दा-ए-मौहूम हटा दे
इतनी निगह-ए-शौक़ अभी चालाक नहीं है
कर चाक-ए-गरेबाँ से न अंदाज़ा-ए-वहशत
दीवाने अभी दामन-ए-दिल चाक नहीं है
'सीमाब' दुआ कीजिए क्या सब्र-ओ-सुकूँ की
शाइस्ता-ए-तस्कीं दिल-ए-ग़मनाक नहीं है
ग़ज़ल
अंजाम हर इक शय का ब-जुज़ ख़ाक नहीं है
सीमाब अकबराबादी