अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की
कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैं ने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
टूट गए सय्याल नगीने फूट बहे रुख़्सारों पर
देखो मेरा साथ न देना बात है ये रुस्वाई की
वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उन को जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की
उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफ़ुक़ में डूब गया
रोते रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
ग़ज़ल
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
क़तील शिफ़ाई