अँधेरी शब में चराग़-ए-रह-ए-वफ़ा देना
तअ'ल्लुक़ात को नज़दीक से सदा देना
जहाँ खड़ी हूँ वहाँ से पलट नहीं सकती
अभी न मुझ को मोहब्बत का वास्ता देना
मैं बेबसी का सलीक़ा निभाऊँगी कब तक
बढ़े जो प्यास चराग़-ए-सदा बुझा देना
बुझे बुझे सभी मंज़र हैं आश्नाई के
मिरे लबों को कोई हर्फ़-ए-मुद्दआ' देना
उमीद हाथ से दामन अगर छुड़ाने लगे
तो फिर मुझे भी मिरे शहर का पता देना
भटक न जाऊँ कहीं ग़म की रहगुज़ारों में
निगाह-ओ-दिल को उजालों का रास्ता देना
रफ़ाक़तों को जो तन्हाइयाँ सताने लगें
उदासियों को कोई रंग-ए-आश्ना देना
अगर तुम्हें भी कोई इख़्तियार मिल जाए
तो फिर तड़पते दिलों को कहीं मिला देना
लिखे हैं अश्कों से लम्हात-ए-ज़िंदगी 'ऊषा'
उन्हें किताब-ए-मोहब्बत में तुम सजा देना
ग़ज़ल
अँधेरी शब में चराग़-ए-रह-ए-वफ़ा देना
उषा भदोरिया