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अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम | शाही शायरी
andheri raat ke sanche mein Dhaale ja chuke the hum

ग़ज़ल

अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम

सचिन शालिनी

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अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम
बहुत ही देर से आए उजाले जा चुके थे हम

थे ऐसी बद-गुमानी में नहीं एहसास हो पाया
हमारी ही कहानी से निकाले जा चुके थे हम

ये मोती अश्क के अब तो सदा पलकों पे रहते हैं
समुंदर से ज़ियादा ही खंगाले जा चुके थे हम

ज़मीं पर आएँगे तो फ़ैसला होगा मुक़द्दर का
हवा में एक सिक्के से उछाले जा चुके थे हम

सचिन' सूरज से ज़ाइद सुर्ख़ है हर ज़ख़्म सीने का
ग़मों की आँच में इतना उबाले जा चुके थे हम