अंधेरे घर में चराग़ों से कुछ न काम लिया
कि अपने आप से यूँ हम ने इंतिक़ाम लिया
तुम्हारे शहर से सौग़ात और क्या मिलती
किसी से प्यास ली मैं ने किसी से जाम लिया
मिरे ज़वाल की वो साअतें रही होंगी
तुम्हें पुकार के दामन किसी का थाम लिया
शजर शजर मिरी परवाज़ थी हवा की तरह
खुली फ़ज़ा में मुझे किस ने ज़ेर-ए-दाम लिया
अजीब चीज़ है 'शाहिद' ये ख़ुद-शनासी भी
सलीब-ओ-दार पे भी मैं ने अपना नाम लिया
ग़ज़ल
अंधेरे घर में चराग़ों से कुछ न काम लिया
शाहिद कलीम