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अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ | शाही शायरी
andar ki duniyaen mila ke ek nagar ho jaen

ग़ज़ल

अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ

हैदर क़ुरैशी

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अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ
या फिर आओ मिल कर टूटें और खंडर हो जाएँ

एक नाम पढ़ें यूँ दोनों और दुआ यूँ माँगें
या सज्दे से सर न उठें या लफ़्ज़ असर हो जाएँ

ख़ैर और शर की आमेज़िश और आवेज़िश से निखरें
भूल और तौबा करते सारे साँस बसर हो जाएँ

हम अज़ली आवारा जिन का घर ही नहीं है कोई
लेकिन जिन रस्तों से गुज़रें रस्ते घर हो जाएँ

एक गुनह जो फ़ानी कर के छोड़ गया धरती पर
वही गुनह दोबारा कर लें और अमर हो जाएँ

सूफ़ी साधू बन कर तेरी खोज में ऐसे निकलें
ख़ुद ही अपना रस्ता मंज़िल और सफ़र हो जाएँ

रिज़्क़ की तंगी इश्क़ का रोग और लोग मुनाफ़िक़ सारे
आओ ऐसे शहर से 'हैदर' शहर-बदर हो जाएँ