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अना की क़ैद से निकले मुक़ाबला तो करे | शाही शायरी
ana ki qaid se nikle muqabla to kare

ग़ज़ल

अना की क़ैद से निकले मुक़ाबला तो करे

नज्मुस्साक़िब

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अना की क़ैद से निकले मुक़ाबला तो करे
वो मेरा साथ निभाने का हौसला तो करे

कभी न टूटने वाला हिसार बन जाऊँ
वो मेरी ज़ात में रहने का फ़ैसला तो करे

उसे मैं सौंप दूँ अपनी ये मुंतज़िर आँखें
वो मेरी खोज में जाने का तज़्किरा तो करे

ज़माने भर को मैं अपनी गिरफ़्त में ले लूँ
मिरा नसीब मुझे तुझ से मावरा तो करे

मैं उस को खो के अधूरा वो मुझ को पा के उदास
हमारे कर्ब का कोई मुआज़ना तो करे