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अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है | शाही शायरी
amiron ke bure atwar ko jo Thik samjhe hai

ग़ज़ल

अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है

ज़मीर अतरौलवी

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अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है
मिरी हक़ बात को वो क़ाबिल-ए-तश्कीक समझे है

बहुत मुश्किल है जो उस की ग़रीबी दूर हो जाए
अजब ख़ुद्दार है इमदाद को भी भीक समझे है

मिरे बारे में उस के कान भरता है कोई शायद
बयाँ तौसीफ़ करता हूँ तो वो तज़हीक समझे है

तिरे ख़त तेरी तस्वीरें शिकस्ता-दिल के कुछ टुकड़े
तिरा दीवाना इन सब को तिरी तमलीक समझे है

मैं उस के हर गुमाँ का पास अक्सर रक्खा करता हूँ
मिरा दिल अपने दिल के वो बहुत नज़दीक समझे है

चले है इस तरह जैसे चले तलवार पर कोई
वो मेरी रहगुज़र को जाने क्यूँ बारीक समझे है

सियासत के अँधेरों ने उजाले सब निगल डाले
ग़रीब इंसान दिन को भी शब-ए-तारीक समझे है