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अमीन-ए-ग़ैरत-ए-उल्फ़त जो ज़िंदगी होगी | शाही शायरी
amin-e-ghairat-e-ulfat jo zindagi hogi

ग़ज़ल

अमीन-ए-ग़ैरत-ए-उल्फ़त जो ज़िंदगी होगी

मुख़्तार हाशमी

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अमीन-ए-ग़ैरत-ए-उल्फ़त जो ज़िंदगी होगी
वो बे-ख़ुदी में भी शाइस्ता-ए-ख़ुदी होगी

जो मस्लहत पे ज़रूरत को टालती होगी
वो ज़िंदगी नहीं तौहीन-ए-ज़िंदगी होगी

निगाह कर ले ख़ुद अपने ज़मीर पर दुनिया
हमारा ज़र्फ़ तो दुनिया भी जानती होगी

महल्ल-ए-सज्दा जहाँ होगा सर झुकेगा वहीं
असीर-ए-क़ैद-ए-तअ'य्युन न बंदगी होगी

इस ए'तिमाद पे हर ग़म में मुस्कुराता हूँ
हुई है शाम तो 'मुख़्तार' सुब्ह भी होगी