अल्लाह रे यादों की ये अंजुमन-आराई
हँसते हुए ग़म-ख़ाने महकी हुई तन्हाई
कुछ तल्ख़ हक़ाएक़ ने मामूल बदल डाले
अपनों से कम-आमेज़ी ग़ैरों से शनासाई
ये कौन सा आलम है अफ़्सुर्दा-मिज़ाजी का
गुलशन में भी वीरानी महफ़िल में भी तन्हाई
'इक़बाल' जिधर देखो ज़ुल्मात के पहरे हैं
आसाँ-तलबी हम को किस मोड़ पे ले आई
ग़ज़ल
अल्लाह रे यादों की ये अंजुमन-आराई
इक़बाल अज़ीम