EN اردو
अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़ | शाही शायरी
allah ke bhi ghar se hai ku-e-butan aziz

ग़ज़ल

अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़

रिन्द लखनवी

;

अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़
का'बे से भी ज़ियादा है हिन्दोस्ताँ अज़ीज़

ये मुश्त-ए-ख़ाक हो कहीं मक़्बूल-ए-बारगाह
मिट्टी हमारी कर भी चुके आसमाँ अज़ीज़

शिकवे की जा-ए-ग़ैर से बाक़ी नहीं रही
दुश्मन से भी ज़ियादा हैं ख़ूबान-ए-जाँ अज़ीज़

हस्ती अदम से लाई है किस मुल्क-ए-ग़ैर में
कोई न आश्ना है हमारा न याँ अज़ीज़

ऐ 'रिंद' अपने अहद में क़द्र-ए-सुख़न नहीं
हर अस्र में वगरना थे अहल-ए-ज़बाँ अज़ीज़