अली-बिन-मुत्तक़ी रोया
वही चुप था वही रोया
अजब आशोब-ए-इरफ़ाँ में
फ़ज़ा गुम भी कि जी रोया
यक़ीं मिस्मार मौसम का
खंडर ख़ुद से तही रोया
अज़ाँ ज़ीना उतर आई
सुकूत-ए-बातिनी रोया
ख़ला हर ज़ात के अंदर
सुना जिस ने वही रोया
नदी पानी बहुत रोई
अक़ीदा रौशनी रोया
सहर-दम कौन रोता है
अली-बिन-मुत्तक़ी रोया
ग़ज़ल
अली-बिन-मुत्तक़ी रोया
राजेन्द्र मनचंदा बानी