अलम मआल अगर है तो फिर ख़ुशी क्या है
कोई सज़ा है गुनाहों की ज़िंदगी क्या है
हमें वो यूँ भी बिल-आख़िर मिटाएँगे यूँ भी
सितम के बा'द करम भी तो है अभी क्या है
निज़ाम-ए-बज़्म-ए-दो-आलम है इंतिशार-आगीं
निगाह-ए-दोस्त में आसार-ए-बरहमी क्या है
किसी मक़ाम पे भी मुतमइन नहीं नज़रें
ज़ियाँ है ज़ौक़-ए-तजस्सुस का आगही क्या है
नमाज़-ए-इश्क़ जो शामिल नहीं इबादत में
फ़रेब-ए-कुफ़्र सरासर है बंदगी क्या है
बदल गई न अगर बाग़बाँ की निय्यत ही
चमन का रंग बदलने में देर ही क्या है
गुज़र गई है शब-ए-ग़म यक़ीं नहीं आता
सहर नुमूद नहीं है तो रौशनी क्या है
मता-ए-हुस्न-ए-दो-आलम से भी सिवा कहिए
क़मर-जमाल है तस्वीर आप की क्या है
जो सेहर-ए-हुस्न की तासीर का नहीं क़ाइल
तिरी नज़र से वो पूछे कि साहिरी क्या है
किसी का हुस्न कहाँ अपना ज़ौक़-ए-दीद कहाँ
किसी के जल्वों से नज़रों की हमसरी क्या है
क़दम क़दम पे दिया है फ़रेब रहबर ने
जो रहबरी उसे कहिए तो रहज़नी क्या है
हमारे दिल पे उचटती नज़र ही डाल कहीं
तुझे ख़बर तो चले सोज़-ए-आशिक़ी क्या है
हमीं ने दिल में जगह दी हमें पे मश्क़-ए-सितम
ये दोस्ती है तो ऐ दोस्त दुश्मनी क्या है
बहार आई है अब आप भी चले आएँ
बहार को भी ख़बर हो शगुफ़्तगी क्या है
वफ़ा का नाम बड़ा हो तो हो 'रिशी' वर्ना
जफ़ा-ए-दोस्त में भी लुत्फ़ की कमी क्या है
ग़ज़ल
अलम मआल अगर है तो फिर ख़ुशी क्या है
ऋषि पटियालवी