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अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं | शाही शायरी
alag hain hum ki juda apni rah-guzar mein hain

ग़ज़ल

अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं

सग़ीर मलाल

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अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं
वगरना लोग तो सारे इसी सफ़र में हैं

हमारी जस्त ने माज़ूल कर दिया हम को
हम अपनी वुसअतों में अपने बाम ओ दर में हैं

यहाँ से उन के गुज़रने का एक मौसम है
ये लोग रहते मगर कौन से नगर में हैं

जो दर-ब-दर हो वो कैसे सँभाल सकता है
तिरी अमानतें जितनी हैं मेरे घर में हैं

अजीब तरह का रिश्ता है पानियों से 'मलाल'
जुदा जुदा सही सब एक ही भँवर में हैं