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अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता | शाही शायरी
aks pani mein agar qaid kiya ja sakta

ग़ज़ल

अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता

साबिर ज़फ़र

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अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता
ऐन-मुमकिन था मैं उस शख़्स को अपना सकता

काश कुछ देर न पलकों पे ठहरती शबनम
मैं उसे सब्र का मफ़्हूम तो समझा सकता

बे-सहारा कोई मिलता है तो दुख होता है
मैं भी क्या हूँ कि किसी काम नहीं आ सकता

कितनी बे-सूद जुदाई है कि दुख भी न मिला
कोई धोका ही वो देता कि मैं पछता सकता

रूठने वाले की आँखें भी तो पुर-नम थीं 'ज़फ़र'
मुझ से बे-अश्क भला कैसे रहा जा सकता