अक्स ने आईने का घर छोड़ा
एक सौदा था जिस ने सर छोड़ा
भागते मंज़रों ने आँखों में
जिस्म को सिर्फ़ आँख भर छोड़ा
हर तरफ़ रौशनी सी फैल गई
साँप ने जब कभी खंडर छोड़ा
धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आँसुओं का घर छोड़ा
खिड़कियाँ पीटती हैं सर शब भर
आख़िरी फ़र्द ने भी घर छोड़ा
क्या करोगे 'निज़ाम' रातों में
ज़ख़्म की याद ने अगर छोड़ा
ग़ज़ल
अक्स ने आईने का घर छोड़ा
शीन काफ़ निज़ाम